मिला नहीं,

मिला नहीं,
मेरा ख़्वाब हक़ीक़त से कभी मिला नही,
ओर में हक़ीक़त में कभी जिया नही ।
चहकते थे लब्ज़ जिनके मेरे लिए,
बहकते थे परस्पर वो मिलने के लिए।
वो न जाने क्यों आज मोन बैठा है,
न जाने किस बात पे अंतर्द्वन्द कर बैठे है।
पास हो के भी अब उनको मिलना नही,
दिल मे अब उनको रहना नही।
ख़्वाब हक़ीक़त से अब मिलते नही,
पुराने किस्से जहन से मिटते नही।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट