सोचना पड़ा,

सोचना पड़ा,

इश्क़ की गलियों का में नदान मुसाफ़िर हु,
दिलो की सौदेबाजी में अभी तो अनाड़ी हु।
रखें है क़दम इश्क़ की दहलीज पर अभी,
मुक़म्मल जहाँ इश्क़ का अभी है बाक़ी।
सोचना क्या है तुझे अब इश्क़ की रहो में,
ये फ़रेब नही सच्चा इश्क़ है मेरा तेरे लिए ।
पल दो पल का साथ नही ताउम्र का ये बंधन है,
अपने दिल की डोर तू मुझे को देदे करदे मुकम्मल इश्क़ मेरा।

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