सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

प्रदर्शित

खबर है तुमको, फिर बेख़बर क्यों

खबर है तुमको सब मेरी, फिर बेखबरी का आलम क्यों। है इश्क़ मेरा मुनासिब, फिर तन्हाइयों का आलम क्यो। तुम जानते हो हलेदिल मेरा, फिर बेखबरी मुनासिब नही। पहचानते हो इस दिल को मुझसे ज्यादा तुम, फिर तिश्नगी क्यो मुमकिन नही।

हाल ही की पोस्ट

दरकार बार बार ये करती है।

वो नजाने क्यों ग़ुम हो जाता है,

तन्हा सफ़र

रंग मोहब्बत का,

हाँ और ना के बीच

मोहब्बत में बिछड़ने की चाहत थी क्या ?

तन्हाइयों का आलम है।

हर साँस शिकायत करती है,

उमंग की पतंग

निगाहों की भाषा