छुपते फिरते रहे,
छुपते फिरते रहे,
ताउम्र छुपते फिरते रहे वो न जाने किस से ,
मन का विद्रोह छुपाते रहे न जाने किस लिए।
अग़र कोई बात हो दिल मे तो कहदो उसे,
क्यों भला राज़ ए दिल अपनो से है छुपाना ।
यू तेरा खुद से नज़रे चुराना हम को नही है भाता ,
तू ख़ुद से छुपती छुपाती रहे इस दिल को वो भी नही भाता।
आईना भी अब तो तेरे दीदार को तराश गया है,
वो खिलखिलाता चेहरा अब नज़र क्यो नही आता।
ताउम्र अब क्यो भला छुपना छुपाना,
छोटी सी ज़िन्दगी है इसे खुल के है जिन।
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